*न्याय के लिये आवाज उठाने वाली पत्रकारिता क्यों बन गई दुधारू गाय और बाजारू वेश्या ?*

★हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष~

■बात उन दिनों की है जब शिक्षकों को गुरु कहकर सम्मान पूर्वक संबोधित किया जाता था। जब गुरु शिष्यों को सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे तो कोई भी विद्यार्थी किसी भी समय गुरु जी के निवास पर जाकर किसी भी प्रश्न का उत्तर पूछ सकता था।*

*जिस गांव की पाठशाला में गुरु शिक्षा देने के लिए आते थे उन्हें गांव में हर कोई अपने घर में निशुल्क रखता था, उनके खाने-पीने, रहने, कपड़े आदि का प्रबंध भी बच्चों के माता पिता अथवा अभिभावक एवं ग्रामीण करते थे। खेत खलिहान से जो भी खानपान के लिये अनाज, फल सब्जी आती थी उसमें से गुरु जी के लिए भी एक हिस्सा प्रतिदिन जाता था।*

*हर कोई गुरु को अपने घर भोजन कराना अपना सौभाग्य समझता था। गुरु जी को भोजन के लिए एक दिन पूर्व ही निमंत्रण दे दिया जाता था, कल बच्चे का जन्मदिन है, कल हमारे बेटे का फलदान हैं, कल यह त्योहार है, पूर्णिमा है आपको भोजन हमारे यहां करना है। बाकायदा घर का एक सदस्य गुरु जी को भोजन के लिए साजो समान लेने जाता था। गुरु जी को जो वेतन मिलता था वह पूरा का पूरा गुरु जी अपने घर अपने परिवार के लालन पालन के लिए पहुंचा देते थे।*

*यहां तक की देसी घी, सरसों का तेल, अनाज, दालें, सब्जियां गुरु जी के यहां इतनी आ जाती थी कि उनका भंडार भी हमेशा भरा रहता था।*

*कई बार तो स्कूल के प्रांगण में गोबर के कंडो पर दाल, बाटी, चूरमा ही बनता था।*

*हर सप्ताह स्कूल में सारे गुरुजनों का भोजन सामूहिक रूप से होता था। देश भक्ति, गुरुओं की सेवा, माता पिता की भक्ति, पड़ोसियों का सम्मान, औषधियों का ज्ञान, वेदों को ईश्वरी दर्जा, गुरु को भगवान समझना, परिवार का सम्मान, यही सब जीवन में था।*

*उसके बाद लोकतंत्र के फर्जी प्रहरी सत्ता की चादर ओढ़ कर आ गए। उन्होंने औषधि के जानकारों को डॉक्टर बनाना शुरु कर दिया, मेडिकल कॉलेज खुल गए, जो शिक्षा के मंदिर थे उनके गुरुवर, शिक्षकों में बदल गए, पढ़ाई के बदले नोटों की माला, बालिकाओं का शारीरिक शोषण भी इसमें शामिल हो गया।*

*अब जिम्मेदार कौन हैं, कौन लोग हैं जिन्होंने केवल धन उपार्जन के लिए बेड़ा गर्क कर दिया और शिक्षा को बाजारू वेश्या बना दिया।*

*अब इस युग में बच्चा ₹500000 फीस देकर पत्रकारिता का सर्टिफिकेट हासिल करता है। क्या वह सच्चाई लिखेगा? सच्चाई पर चलेगा? जिसके माता-पिता ने अपनी संपत्ति बेचकर उसे पत्रकार बनाया है, क्या वह पत्रकारिता करेगा? या अपनी खोई हुई अपने परिवार की खोई हुई संपत्ति को अर्जित करेगा।*

*इसीलिए पत्रकारिता का स्वरूप आप लोगों की आवाज या पीड़ितों की आवाज उठाना नहीं रह गया अब तो केवल माल कमाना रह गया है, जो बेचारे पुरानी पीढ़ी के पत्रकार हैं उनके परिवार की दशा देखकर मुझे पीड़ा होती है सिद्धांत पर चलने वालों का वही हाल हो रहा है जो राजा हरिश्चंद्र का हुआ था।*

*बस ईमानदार और सच्चे पत्रकार मुर्दा घाट पर चौकीदारी नहीं कर रहे क्योंकि वह पोस्ट भी अब सरकार के मजीरे बजाने वाले पत्रकारों ने ले ली है। अब तो केवल राम नाम जपो, लुभायो और लूट के ले चलो घर , यही सिद्धांत बचा है। इक्का-दुक्का लोग हैं जो सच्ची पत्रकारिता कर रहे हैं।*

*पत्रकारिता धंधा नहीं है, धंधा तो वेश्याएं करती हैं पत्रकारिता सच्चाई के दीपक को जलाने का मिशन है। पत्रकारिता तो पीड़ित गरीब की आवाज लोकतंत्र के सभी स्तंभों तक पहुंचाने का मंत्र है। लेकिन कितने लोग इस पर चल रहे हैं आजकल तो अधिकांश लोगों का जीवन मनी मंत्र पर आकर टिक गया है।*

*धन्यवाद है उन लोगों को जिन्होंने सोशल मीडिया का अविष्कार किया, यूट्यूब लेकर आए, फेसबुक लेकर आए और कई तरह के मीडिया मंच प्रकट कर दिए, जिसके कारण यदा-कदा सच्चाई जनमानस के सामने आ जाती है, नहीं तो चैनल एवं सरकारी सूचना तंत्र तो सच्चाई को कब्र खोदकर जमीन में हमेशा के लिए दफनाने पर उतारू है।*

*सत्यम श्रीवास्तव*
*प्रधान संपादक*
*TNI NEWS AGENCY*

*https://www.youtube.com/user/TVNewsIndia*

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