पंजाब की वीर भूमि को, जलियांवाला बाग की पवित्र मिट्टी को, मेरा अनेक-अनेक प्रणाम! मां भारती की उन संतानों को भी नमन, जिनके भीतर जलती आज़ादी की लौ को बुझाने के लिए अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी गईं। वो मासूम बालक-बालिकाएं, वो बहनें, वो भाई, जिनके सपने आज भी जलियांवाला बाग की दीवारों में अंकित गोलियों के निशान में दिखते हैं। वो शहीदी कुआं, जहां अनगिनत माताओं-बहनों की ममता छीन ली गई, उनका जीवन छीन लिया गया। उनके सपनों को रौंद डाला गया। उन सभी को आज हम याद कर रहे हैं।
भाइयों और बहनों,
जलियांवाला बाग, वो स्थान है, जिसने सरदार उधम सिंह, सरदार भगत सिंह, जैसे अनगिनत क्रांतिवीरों, बलिदानियों, सेनानियों को हिंदुस्तान की आजादी के लिए मर-मिटने का हौसला दिया। 13 अप्रैल 1919 के वो 10 मिनट, हमारी आजादी की लड़ाई की वो सत्यगाथा, चिरगाथा बन गए, जिसके कारण आज हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना पा रहे हैं। ऐसे में आज़ादी के 75वें वर्ष में जलियांवाला बाग स्मारक का आधुनिक रूप देश को मिलना, हम सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा का अवसर है। ये मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे कई बार जलियांवाला बाग की इस पवित्र धरती पर आने का, यहां की पवित्र मिट्टी को अपने माथे से लगाने का सौभाग्य मिला है। आज जो रेनोवेशन का काम हुआ है, उसने बलिदान की अमर गाथाओं को और जीवंत बना दिया है। यहां जो अलग-अलग गैलरी बनाई गई हैं, जो दीवारों में शहीदों के चित्र उकेरे गए हैं, शहीद उधम सिंह जी की प्रतिमा है, वो सब हमें उस कालखंड में लेकर जाते हैं। जलियांवाला बाग नरसंहार से पहले इस स्थान पर पवित्र बैसाखी के मेले लगते थे। इसी दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘सरबत दा भला’ की भावना के साथ खालसा पंथ की स्थापना की थी। आज़ादी के 75वें साल में जलियांवाला बाग का ये नया स्वरूप देशवासियों को इस पवित्र स्थान के इतिहास के बारे में, इसके अतीत के बारे में बहुत कुछ जानने के लिए प्रेरित करेगा। ये स्थान नई पीढ़ी को हमेशा याद दिलाएगा कि हमारी आजादी की यात्रा कैसी रही है, यहाँ तक पहुँचने के लिए हमारे पूर्वजों ने क्या-क्या किया है, कितना त्याग, कितना बलिदान, अनगिनत संघर्ष। राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्य क्या होने चाहिए, कैसे हमें अपने हर काम में देश को सर्वोपरि रखना चाहिए, इसकी भी प्रेरणा नई ऊर्जा के साथ, इसी स्थान से मिलेगी।
साथियों,
हर राष्ट्र का दायित्व होता है कि वो अपने इतिहास को संजोकर रखे। इतिहास में हुई घटनाएं, हमें सिखाती भी हैं और आगे बढ़ने की दिशा भी देती हैं। जलियांवाला बाग जैसी ही एक और विभीषिका हमने भारत विभाजन के समय भी देखी है। पंजाब के परिश्रमी और जिंदादिल लोग तो विभाजन के बहुत बड़े भुक्तभोगी रहे हैं। विभाजन के समय जो कुछ हुआ, उसकी पीड़ा आज भी हिन्दुस्तान के हर कोने में और विशेषकर पंजाब के परिवारों में हम अनुभव करते हैं। किसी भी देश के लिए अपने अतीत की ऐसी विभीषिकाओं को नजर-अंदाज करना सही नहीं है। इसलिए, भारत ने 14 अगस्त को हर वर्ष ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में आने वाली पीढ़ियों को याद रखें, इसलिये इसे मनाने का फैसला किया है। ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ आने वाली पीढ़ियों को भी याद दिलाएगा कि कितनी बड़ी कीमत चुकाकर, हमें स्वतंत्रता मिली है। वो उस दर्द, उस तकलीफ को समझ सकेंगे, जो विभाजन के समय करोड़ों भारतीयों ने सही थी।
साथियों,
गुरुबानी हमें सिखाती है- सुखु होवै सेव कमाणीआ।
अर्थात्, सुख दूसरों की सेवा से ही आता है। हम सुखी तभी होते हैं जब हम अपने साथ साथ अपनों की पीड़ा को भी अनुभव करते हैं। इसीलिए, आज दुनियाभर में कहीं भी, कोई भी भारतीय अगर संकट में घिरता है, तो भारत पूरे सामर्थ्य से उसकी मदद के लिए खड़ा हो जाता है। कोरोना काल हो या फिर अफगानिस्तान का वर्तमान संकट, दुनिया ने इसे निरंतर अनुभव किया है। ऑपरेशन देवी शक्ति के तहत अफगानिस्तान से सैकड़ों साथियों को भारत लाया जा रहा है। चुनौतियाँ बहुत हैं, हालात मुश्किल हैं, लेकिन गुरुकृपा भी हम पर बनी हुई है। हम लोगों के साथ पवित्र गुरुग्रंथ साहब के ‘स्वरूप’ को भी शीश पर रखकर भारत लाए हैं।
साथियों,
बीते वर्षों में देश ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए जी जान से प्रयास किया है। मानवता की जो सीख हमें गुरुओं ने दी थी, उसे सामने रखकर देश ने ऐसी परिस्थितियों से सताये हुए, अपने लोगों के लिए नए कानून भी बनाए हैं।
साथियों,
आज जिस प्रकार की वैश्विक परिस्थितियां बन रही हैं, उससे हमें ये अहसास भी होता है कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत के क्या मायने होते हैं। ये घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि राष्ट्र के रूप में, हर स्तर पर आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास क्यों जरूरी है, कितना जरूरी है। इसलिए, आज जब हम आज़ादी के 75 साल मना रहे हैं, तो ये आवश्यक है कि हम अपने राष्ट्र की बुनियाद को मजबूत करें, उस पर गर्व करें। आज़ादी का अमृत महोत्सव आज इसी संकल्प को लेकर के आगे बढ़ रहा है। अमृत महोत्सव में आज गांव-गांव में सेनानियों को याद किया जा रहा है, उनको सम्मानित किया जा रहा है। देश में जहां भी आज़ादी की लड़ाई के महत्वपूर्ण पड़ाव हैं, उनको सामने लाने के लिए एक समर्पित सोच के साथ प्रयास हो रहे हैं। देश के राष्ट्र-नायकों से जुड़े स्थानों को आज संरक्षित करने के साथ ही वहां नए आयाम भी जोड़े जा रहे हैं। जलियाँवाला बाग की तरह ही आज़ादी से जुड़े दूसरे राष्ट्रीय स्मारकों का भी नवीनीकरण जारी है। इलाहाबाद म्यूज़ियम में 1857 से लेकर 1947 की हर क्रांति को प्रदर्शित करने वाली देश की पहली Interactive Gallery, इसका निर्माण जल्द ही पूरा हो जाएगा। क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद को समर्पित ये ‘आज़ाद गैलरी’, सशस्त्र क्रांति से जुड़े उस समय के दस्तावेज, कुछ चीजें उसका भी एक डिजिटल अनुभव देगी। इसी प्रकार कोलकाता में बिप्लॉबी भारत गैलरी में भी क्रांति के चिन्हों को भावी पीढ़ी के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से आकर्षक बनाया जा रहा है। इससे पहले सरकार द्वारा आज़ाद हिंद फौज के योगदान को भी इतिहास के पिछले पन्नों से निकालकर सामने लाने का प्रयास किया गया है। अंडमान में जहां नेताजी ने पहली बार तिरंगा फहराया, उस स्थान को भी नई पहचान दी गई है। साथ ही अंडमान के द्वीपों का नाम भी स्वतन्त्रता संग्राम के लिए समर्पित किया गया है।
भाइयों और बहनों,
आज़ादी के महायज्ञ में हमारे आदिवासी समाज का बहुत बड़ा योगदान है। जनजातीय समूहों ने त्याग और बलिदान की अमर गाथाएँ आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। इतिहास की किताबों में इसको भी उतना स्थान नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था, जिसके वो हकदार थे। देश के 9 राज्यों में इस समय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्ष को दिखाने वाले म्यूज़ियम्स पर भी काम चल रहा है।
साथियों,
देश की ये भी आकांक्षा भी थी, कि सर्वोच्च बलिदान देने वाले हमारे सैनिकों के लिए राष्ट्रीय स्मारक होना चाहिए। मुझे संतोष है कि नेशनल वॉर मेमोरियल आज के युवाओं में राष्ट्र रक्षा और देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देने की भावना जगा रहा है। देश को सुरक्षित रखने के लिए पंजाब सहित देश के कोने-कोने के जो हमारे वीर सैनिक शहीद हुए हैं, आज उनको उचित स्थान और उचित सम्मान मिला है। इसी प्रकार, हमारे जो पुलिस के जवान हैं, जो हमारे अर्धसैनिक बल हैं, उनके लिए भी आज़ादी के इतने दशकों तक देश में कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं था। आज पुलिस और अर्धसैनिक बलों को समर्पित राष्ट्रीय स्मारक भी देश की नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहा है।
साथियों,
पंजाब में तो शायद ही ऐसा कोई गांव, ऐसी कोई गली है, जहां शौर्य और शूरवीरता की गाथा ना हो। गुरुओं के बताए रास्ते पर चलते हुए, पंजाब के बेटे-बेटियां, मां-भारती की तरफ टेढ़ी नज़र रखने वालों के सामने चट्टान बनकर खड़े हो जाते हैं। हमारी ये धरोहर और समृद्ध हो, इसके लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाशोत्सव हो, गुरु गोबिंद सिंह जी का 350वां प्रकाशोत्सव हो, या फिर गुरु तेगबहादुर जी का 400वां प्रकाशोत्सव हो, ये सभी पड़ाव सौभाग्य से बीते 7 सालों में ही आए हैं। केंद्र सरकार ने प्रयास किया है कि देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में इन पावन पर्वों के माध्यम से हमारे गुरुओं की सीख का विस्तार हो। अपनी इस समृद्ध धरोहर को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए काम लगातार जारी है। सुल्तानपुर लोधी को हैरिटेज टाउन बनाने का काम हो, करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण हो, ये इसी प्रयास का हिस्सा हैं। पंजाब की दुनिया के अलग-अलग देशों से एयर कनेक्टिविटी हो या फिर देशभर में जो हमारे गुरु स्थान हैं, उनकी कनेक्टिविटी हो, उसको सशक्त किया गया है। स्वदेश दर्शन योजना के तहत आनंदपुर साहिब-फतेहगढ़ साहिब-फिरोज़पुर-अमृतसर-खटकड़ कलां-कलानौर-पटियाला हैरिटेज सर्किट को विकसित किया जा रहा है। कोशिश ये है कि हमारी ये समृद्ध विरासत भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित भी करती रहे और पर्यटन के रूप में रोज़गार का साधन भी बने।
साथियों,
आज़ादी का ये अमृतकाल पूरे देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस अमृतकाल में हमें विरासत और विकास को साथ लेकर चलना होगा, और पंजाब की धरती हमें हमेशा-हमेशा से इसकी प्रेरणा देती रही है। आज ये जरूरी है कि पंजाब हर स्तर पर प्रगति करे, हमारा देश चहुँ दिशा में प्रगति करे। इसके लिए हमें मिलकर काम करना होगा, ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ की भावना के साथ-साथ हमें काम करते रहना होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि जलियाँवाला बाग की ये धरती हमें हमारे संकल्पों के लिए सतत ऊर्जा देती रहेगी, और देश अपने लक्ष्यों को जल्द पूरा करेगा। इसी कामना के साथ एक बार फिर इस आधुनिक स्मारक की बहुत-बहुत बधाई। बहुत-बहुत धन्यवाद!
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