औरैया 4 जुलाई। हिन्दी प्रोत्साहन निधि, औरैया
के तत्वाधान में पुस्तक विमोचन एवं काव्य गोष्ठी
आज  जनपद के ख्यातिलब्ध साहित्यकार पं0 ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ कृत तीन पुस्तकों 1. पं0 ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ समग्र (भाग प्रथम) सम्पादक – डाॅ0 प्रभा चतुर्वेदी एवं अंजनी चतुर्वेदी 2. पं0 ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ समग्र (भाग द्वितीय) सम्पादक – डाॅ0 धर्मेन्द्र प्रताप सिंह 3. आचार्य देव विरचित श्रंृगार विलासिनी – टीकाकार – पं0 ओम नारायण चतुर्वेदी ‘मंजुल’ का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि रामस्वरूप दीक्षित जी ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुसमीक्षक डाॅ0 धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व प्राचार्य विवेकानन्द ग्रामोद्योग महाविद्यालय दिबियापुर रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन गीतकार अनिरुद्ध त्रिपाठी जी ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार मंजुल जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित महाकाव्य ‘‘मंजुल माणिक्यम्’’ रचनाकार डाॅ0 नरेश बाबू ‘नरहरि विनायक’ प्राचार्य दर्शन सिंह स्मृति महाविद्यालय, कंचैसी बाजार, कानपुर देहात ने उन्हें भेंट किया गया।
कवि गोष्ठी का शुभारम्भ डाॅ0 गुरुप्रताप वर्मा जी ने वाणी वन्दना से किया –
राष्ट्र प्रेम उर में इतना भर, वन्दे मातरम् के निकलें स्वर।
इसके उपरान्त ओज के सशक्त हस्ताक्षर गोपाल पाण्डेय ने अपनी ओजस्वी रचना का पाठ किया।
आये थे कहाँ से वो साथ किसके थे।
तिरंगे को झुकाने वाले वो हाथ किसके थे।
कवि अभिषेक तिवारी ने अपनी कविता का पाठ किया।
जीवन के स्वर्णिम पथ पर, खुद को ही बढ़ना पड़ता है,
कर्मक्षेत्र कुरक्षेत्र हुआ है, खुद को ही लड़ना पड़ता है।
पंथ नारायण पाण्डेय – हे हमारे देश के नेता किसी दिन गाँव आओ,
एक दिन तुम मुफलिसी में साथ मेरे भी बिताओ।
कवि डाॅ0 गोविन्द द्विवेदी – छोडिये निंदा तमस की, दीप खुद बन जाइये।
रात गहरी जगमगाये साथ मिलकर आइये।।
सुकवि हरिशंकर मिश्र – अर्थहीन हो गये पुराने मुहावरों को नई तरह से लिखा जाए।
हमारे रंग बदलने को आज से इन्सानी फितरत कहा जाये।
कवि सुरेश चतुर्वेदी – इस बदले हुए जमाने के हम प्रहरी हो गये।
अपने जो थे कभी आज बैरी हो गये।।
पीयूषमणि मिश्रा – ‘ओम’ नाम आदर्श है, ‘नारायण’ आधार।
‘चतुर्वेदी’ निलय सुभग, मंजुल सत-शिव सार।।
देवी चरन वर्मा दिव्यांशु – जैसे जैसे जीवन बीता, उलझे माया जाल में।
कब तक और रहूँ क्या जानू, इस जग के जंजाल में।।
श्रीमती गीता चतुर्वेदी – शंकर शंकर है शिव शंकर हे अभयंकर हे शुभकारी।
आदि अनादि अनंत अगोचर, अन्तर्यामि हरे उपकारी।।
डाॅ0 अजय शुक्ल ‘अंजाम’ – माँ ने जो बताई उस राह पे चलंेगे आप।
आन बान शान के विधान मिल जायेगंे।
श्री अनिरुद्ध त्रिपाठी – तुम न रूप की धूप समेटो आंगन से,
सम्बन्धों के पाटल मुरझा जायेगंे।
मुख्य अतिथि डाॅ0 धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा – मंजुल जी का कृतित्व एवं व्यक्तित्व विराट है, उन्होंने न केवल कविता व गद्य का सृजन कियाा बल्कि नए लेखकों को दिशा भी दी सच्चे अर्थों में वे औरैया के भारतेन्दु हैं। वे शतायु हों व निरामय रहें।
अन्त में आदरणीय मंजुल जी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर बृजेश बन्धु, आशीष मिश्रा, डाॅ0 प्रभा चतुर्वेदी, प्रद्युम्न चतुर्वेदी एवं अंजनी चतुर्वेदी उपस्थित रहे।

रिपोर्ट ब्रजेश बंधुL

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *