डीआरडीओ के दिल्ली स्थित अग्नि, विस्फोटक एवं पर्यावरण सुरक्षा केंद्र (सीएफईईएस) प्रयोगशाला द्वारा विकसित इस तकनीक की मदद से यात्री कम्पार्टमेंट में लगने वाली आग का महज़ 30 सेकेंड के भीतर पता लगाया जा सकता है और उसके 60 सेकेंड के भीतर उसे बुझाया जा सकता है। इससे जान और माल की बड़े पैमाने पर सुरक्षा की जा सकती है। यात्री कम्पार्टमेंट के लिए एफ़डीएसएस के अंतर्गत 80 लीटर पानी की क्षमता वाला टैंक होगा और 200 बार तक दबाव क्षमता वाला 6.8 किलोग्राम का नाइट्रोजन सिलेंडर बस में उपयुक्त स्थान पर लगाया जाएगा, जो 16 स्वचालित बिन्दुओं वाले ट्यूब से जुड़ा रहेगा। इंजन के लिए एफ़डीएसएस ऐरोसॉल उत्पादित करेगा जो सक्रिय होने के महज़ 5 सेकेंड के भीतर ही आग को बुझाने में सक्षम होगा।
अग्नि, विस्फोटक एवं पर्यावरण सुरक्षा केंद (सीएफईईएस) प्रयोगशाला आग से जुड़े जोखिमों का आकलन और आग बुझाने के लिए विभिन्न तकनीक के संबंध में दक्षता रखता है। इस प्रयोगशाला ने युद्धक टैंक, जलपोतों और पनडुब्बियों के लिए भी अग्निशमन यंत्र विकसित किए हैं। यात्री बसों के लिए विकसित की गई तकनीक को भी रक्षा उद्देश्यों से बनाए जाने वाले यंत्र के स्तर का विकसित किया है। आग लगने की आशंका आमतौर पर सभी प्रकार के वाहनों में होती है लेकिन स्कूल बसों और लंबी दूरी वाली स्लीपर यात्री बसों में आग की दुर्घटनाएं बड़े पैमाने पर जान और माल के नुकसान का कारण बनती हैं इसलिए इन्हें लेकर विशेष चिंताएं व्यक्त की जाती रही हैं। अब तक इंजन में लगने वाली आग को ही अग्नि सुरक्षा नियामक दायरे में लाया गया है।
रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इन तकनीक के विकास के लिए वैज्ञानिकों के दल की सराहना की।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री नितिन गडकरी ने एफ़डीएसएस के विकास को यात्री बसों में सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने इस पर संतोष व्यक्त किया कि आग लगने की घटनाओं पर डीआरडीओ का भी ध्यान गया है। उन्होंने कहा कि इस विकसित तकनीक को आगे ले जाना भी बेहद महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर डीआरडीओ के अध्यक्ष और डीडीआर एंड डी सचिव डॉ. जी सतीश रेड्डी ने इस प्रयास के लिए डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को बधाई दी।
पी आई बी